ॐ
दोहा संसार
अनिल अनल भू नभ सलिल,
पञ्च तत्वमय देह आत्म मिले परमात्म में,
तब हो देह विदेह जन्म ब्याह राखी तिलक,
ग्रह प्रवेश त्यौहार सलिल बचा पौधे लगा,
दें पुस्तक उपहार चित्त-चित्त में गुप्त हैं,
चित्रगुप्त परमात्म गुप्त चित्र निज देख ले,
तभी धन्य हो आत्म शब्द-शब्द अनुभूतियाँ,
अक्षर-अक्षर भाव नाद , थाप, सुर, ताल से,
मिटते सकल अभाव सलिल साधना स्नेह की,
सच्ची पूजा जान प्रति पल कर निष्काम तू,
जीवन हो रस-खान उसको ही रस-निधि मिले,
जो होता रस-लीन पान न रस का अन्य को,
करने दे रस-हीन कहो कहाँ से आए हैं,
कहाँ जायेंगे आप लाये थे, ले जाएँगे,
सलिल पुण्य या पाप जितना पाया खो दिया,
जो खोया है साथ झुका उठ गया,
उठाया झुकता पाया माथ साथ रहा संसार तो,
उसका रहा न साथ, सबने छोड़ा साथ तो,
पाया उसको साथ नेह-नर्मदा सनातन,
सलिल सच्चिदानंद अक्षर की आराधना,
शाश्वत परमानंद सुधि की गठरी जिंदगी,
सांसों का आधार धीरज धरकर खोल मन,
लुटा-लूट ले प्यार।
स्नेह साधना जो करे, नितमन में धर धीर।
।। इस दुनिया में है नहीं, उससे बड़ा अमीर ।।
। नेह मर्मदा में नहा, तरते तन मन प्राण ।
।। कंकर भी शंकर बने, जड़ भी हो संप्राण ।।
। कलकल सलिलप्रवाह में, सुन जीवन का गान ।
।। पाशाणों कोमोम कर, दे॑देकर मुस्कान ।।
। लहरों के संग खेलती, हँस सूरज की धूप ।
।। देख मछलियाँ नाचतीं, रश्मिरथी का रूप ।।
। बैठो रेवा तीर पर, पंकिल पैर पखार ।
।। अँजुरी में लेकर "सलिल", लो निज रूप निहार ।।
। कर सच से साक्षात मन, हो जाता हैसंत ।
।। भुला कामना कामिनी, हो चिंता का अंत ।।
। जो मिलता ले लुटाती, तिनका रखे न पास ।
।। निर्मल रहतीनर्मदा, सबको बाँटहुलास ।।
समाप्त
दोहा संसार
अनिल अनल भू नभ सलिल,
पञ्च तत्वमय देह आत्म मिले परमात्म में,
तब हो देह विदेह जन्म ब्याह राखी तिलक,
ग्रह प्रवेश त्यौहार सलिल बचा पौधे लगा,
दें पुस्तक उपहार चित्त-चित्त में गुप्त हैं,
चित्रगुप्त परमात्म गुप्त चित्र निज देख ले,
तभी धन्य हो आत्म शब्द-शब्द अनुभूतियाँ,
अक्षर-अक्षर भाव नाद , थाप, सुर, ताल से,
मिटते सकल अभाव सलिल साधना स्नेह की,
सच्ची पूजा जान प्रति पल कर निष्काम तू,
जीवन हो रस-खान उसको ही रस-निधि मिले,
जो होता रस-लीन पान न रस का अन्य को,
करने दे रस-हीन कहो कहाँ से आए हैं,
कहाँ जायेंगे आप लाये थे, ले जाएँगे,
सलिल पुण्य या पाप जितना पाया खो दिया,
जो खोया है साथ झुका उठ गया,
उठाया झुकता पाया माथ साथ रहा संसार तो,
उसका रहा न साथ, सबने छोड़ा साथ तो,
पाया उसको साथ नेह-नर्मदा सनातन,
सलिल सच्चिदानंद अक्षर की आराधना,
शाश्वत परमानंद सुधि की गठरी जिंदगी,
सांसों का आधार धीरज धरकर खोल मन,
लुटा-लूट ले प्यार।
स्नेह साधना जो करे, नितमन में धर धीर।
।। इस दुनिया में है नहीं, उससे बड़ा अमीर ।।
। नेह मर्मदा में नहा, तरते तन मन प्राण ।
।। कंकर भी शंकर बने, जड़ भी हो संप्राण ।।
। कलकल सलिलप्रवाह में, सुन जीवन का गान ।
।। पाशाणों कोमोम कर, दे॑देकर मुस्कान ।।
। लहरों के संग खेलती, हँस सूरज की धूप ।
।। देख मछलियाँ नाचतीं, रश्मिरथी का रूप ।।
। बैठो रेवा तीर पर, पंकिल पैर पखार ।
।। अँजुरी में लेकर "सलिल", लो निज रूप निहार ।।
। कर सच से साक्षात मन, हो जाता हैसंत ।
।। भुला कामना कामिनी, हो चिंता का अंत ।।
। जो मिलता ले लुटाती, तिनका रखे न पास ।
।। निर्मल रहतीनर्मदा, सबको बाँटहुलास ।।
समाप्त
_संपर्क
नारायण राव
[email protected]
यदि आप अपनी रचनाएँ नारायण कुंज पेज पर प्रकाशन चाहते है. तो मेल करे, तथा प्रकाशन अनुमती एवं मौलिक प्रमाण अवश्य भेजे.
narayankunj@rediff.com
आप हिंदी लिख सकतें है
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